उलझन ||कविता।।जीवन मे उलझन पर कविता ।।
उलझन
उलझन ही उलझन है , समस्याओं मे डूब कर ही सुलझण है ,
रास्तों के मोड़ में भी उलझन है ,
रास्तों के संकेत हरा –लाल में भी उलझन है ,
रास्तों के मुलाकात में भी सुलझण है ,
रास्तों के रुकावट मे ही सुलझण हैं ,
पथ और पथिक के गुफ्तगू में ही सुलझण है I
उलझन जब –जब बढ़ती है , नसीहत याद आती है
उलझनें जब भी आती है , रहबर खो जाता है ,
उलझनों कि दुनियाँ में हताशा भी आती है ,
निराशा और हताशा को बहुत हि प्रेम है उलझन से ,
उलझन कि इस भूल – भुलैया मे सब कुछ डूब जाता है ,
निगाहे खो जाती है , मन बैठ जाता है I
अपने अन्तर्मन की व्यथा को समझा न पाए उलझन है ,
रिश्तों के कच्चे धागों को सुलझा न पाए उलझन है ,
बीच भँवर मे फँसकर अपने मंजिल को चुन न पाए ,
किसी कि नाराजगी और उदासी को सुलझा न पाए ,
रो – रोकर भी मन को न समझा पाए और
हँसकर भी सपनो की खातिर विष प्याले को पी जाए ,
सुलझे हुए इस गुत्थी को भी न समझ पाए उलझन है I
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