Sanskrit shlok ka jeewan me mahatva || संस्कृत श्लोक का जीवन में महत्व

 यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं।

लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।।
अर्थ – जिस व्यक्ति के पास स्वयं  विवेक नहीं है। उसे शास्त्र क्या करेगा ? जैसे  जिसे स्वयं नेत्र नही है उसे दर्पण क्या करेगा ।


न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु:।
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा।।

अर्थ –  यहां न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु, व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।

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