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संधि की परिभाषा

 संधि - जब दो निकटवर्ती वर्णो के परस्पर मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे संधि कहते है। जैसे  हिम +आलय =हिमालय   संधि मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है स्वर संधि , व्यंजन संधि , विसर्ग संधि (क)   स्वर संधि :- जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है तब जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते है। जैसे   विद्या +आलय - विद्यालय          मुनि + इन्द्र   -   मुनीन्द्र  हिंदी में स्वर की संख्या ग्यारह होती है ।  (ख) व्यंजन संधि :- जब व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते है । जैसे  जगत्+नाथ  जगन्नाथ सत्  जन  सज्जन उत्  हार  उद्धार सत्  धर्म  सद्धर्म   (ग )विसर्ग संधि :- विसर्ग का स्वर या व्यंजन के साथ मेल होने पर जो परिवर्तन होता है ,उसे विसर्ग संधि कहते है । जैसे   नि:+चय - निश्चय         दु:+चरित्र -दुश्चरित्र       नि:+छल - निश्च्छल

Sanskrit shlok ka jeewan me mahatva || संस्कृत श्लोक का जीवन में महत्व

  यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं। लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।। अर्थ – जिस व्यक्ति के पास स्वयं  विवेक नहीं है। उसे शास्त्र क्या करेगा ? जैसे  जिसे स्वयं नेत्र नही है उसे दर्पण क्या करेगा । न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु:। व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा।। अर्थ –  यहां न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु, व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।